फोन कॉल | एक अनोखे प्यार की दास्तान | पार्ट 06

शाम ढलने वाली थी. आबान और सनम कॉफी हाउस मैं बैठे थे. आज अजब सी ख़ामोशी फैली थी फ़िज़ा मे. सनम ने बात शुरू की. 

सनम – आबान पहले तो मैं तुमसे माफी मांगना चाहती हूँ.

आबान – क्यों क्या हुवा। और आज तुम इतनी सीरियस क्यों हो?

सनम – मुझे पहले बोल लेने दो. एक बोझ है सायद एक गुनाह का. जो मुझसे अनजाने मैं हुआ है. मैने शुरू मैं तुमसे दोस्ती सिर्फ़ बदले के लिए की थी. मेरी एक कजिन हैं हिना । जानते तो होंगे ही. बचपन से तुम दोनों साथ रहे हो. काफी अच्छी दोस्ती थी तुम दोनों की. कॉलेज तक रही. जब उसने तुमसे अपने प्यार का इज़हार किया तो तुमने उसका दिल तोड़ दिया.

फोन कॉल | एक अनोखे प्यार की दास्तान | पार्ट 06

आबान – तुम हिना की बहन हो और यह सब तुमने मुझे परेशान करने के लिए करा. तुमको क्या पूरी बात पता भी है. न करने की वजह जानती भी हो ? हीना को मैंने हमेशा एक दोस्त ही समझा था. कभी उस नज़र से नहीं देखा। और देखता भी कैसे, इस तरह के रिश्ते सबके नसीब मैं नहीं होते। 

सनम – मैं जानती हूँ मैंने गलती की है. तुमसे मिलने और बात करने से मुझे पता चल गया है की वह सिर्फ एक तरफ़ा मोहब्बत थी. पर हिना इसको समझ नहीं सकी और एक गम के साथ जीने लगी। जब वह कुछ महीने पहले लंदन आयी मेरे घर तो उसने मुझे बताया। उसके दिल मे एक टीस है की वो अपना पहला प्यार ना पा सकी. बस मैने तुम्हारे दिल से खेलने का फ़ैसला किया. पर जब तुमसे मिली और तुमको जाना तो तुम्हारी सचाई महसूस की. तुम्हारा हिना को मना किया, ज़रूर कोई वजह होगी। मैं तुम्हे सबका ज़िम्मेदार नहीं मनती. मैं  मानती हूँ की मैंने गलत तरीका अपनाया, पर अब मैं उसके लिए शर्मिंदा हूँ.

आबान सब सुनता गया और उसके चेहरे पे अलग अलग तरह से एहसास आते गए और उसका चेहरा फिर से मुरझाने लगा. कुछ देर बाद वह बोला – आपने सब कुछ खुद ही सोचा समझा और फैसला कर लिया ही कौन गलत है कौन सही. सामने वाले की भी कोई मजबूरी हो सकती है. हो सकता है की वह न चाहते हुवे भी मजबूर हो. 

सनम – मुझे पता है की मैने तुम्हारा दिल दुखाया है. पर मैं तुमसे मोहब्बत करने लगी हूँ. मैंने इसी वजह से सब कुछ तुमको बताया है. मैं सच मैं तुमसे मोहब्बत करने लगी हूँ. प्लीज मुझे माफ़ करदो। मैं इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहती हूँ.

आबान – आपका बहुत बहुत शुक्रिया। इस खूबसूरत दोस्ती बहरे रिश्ते का. पर मैं इतना मज़बूत नहीं हूँ की इसको निभा सकूं। या कहूँ की आपके नज़रिये से मैं इस लायक ही नहीं। 

सनम – प्लीज आबान, मुझे खुद अच्छा नहीं लग रहा है. मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी है। 

आबान – गलती तो मेरे नसीब की है. जब आप ने मुझसे बिना कोई वजह दोस्ती की तो मुझे पहले हैरानी हुई. फिर जब मैं आपसे मिला और बात की तो दिल को अच्छा लगने लगा. आपसे थोड़ा अटॅचमेंट होने लगा. मुझे लगा कोई तो है जो मुझे जुसजज किये बिना दोस्ती निभा रहा है. पर यहाँ तो बात ही कुछ और थी. मुझे पहले ही गुनहगार मान के सजा दी जा रही थी.

सनम – प्लीज ऐसा न बोलो। मुझे एक मौका दे दो. थोड़ा वक़्त देदो इस रिश्ते को. मैं तुमको ज़िन्दगी मैं कभी परेशान नहीं करुँगी। इसको मेरी पहली और आखिरी खता मान के मांफ कर दो.

आबान – काश मैं इस काबिल होता और आपको वक़्त दे पता. वक़्त ही तो नहीं है. वक़्त ही से लड़ रहा हूँ. खैर चलिए वक़्त यहाँ भी तेज़ ही चल रहा है. देर हो रही है और आपको ड्राप भी करना है. 

यह कह के आबान उठ गया. और धीरे धीरे पार्किंग की तरफ बढ़ गया. सनम भी भरी दिल से उसके पीछे चलने लगी. उसकी हिम्मत न हुई कुछ बोलने की या उसके साथ चलने की. जब दिलों मे फैसले आते है तो बहुत कुछ बदल जाता हैं. पूरे रास्ते दोनों चुप ही रहे. कोई बात नहीं हुई. एक अजीब सा सन्नाटा था. कुछ दिन पहले जो रिश्ता हंसी और ठहाकों से भरा था, आज उसमे ख़ामोशी और सिसकियाँ भरी थी. 

कुछ देर बाद सनम का घर आया. वह उतरने से पहले कुछ कहना चाहती थी पर उसकी हिम्मत नहीं हुई. वह कार से उतर गयी तो आबान ने तेज़ी से कार बढ़ा दी. सनम वही खड़े हो के कार को अपने से दूर जाते देखती रही. जैसे वह कार न कोई उसकी रूह को उससे दूर ले जा रहा हो.  

फोन कॉल | एक अनोखे प्यार की दास्तान | पार्ट 07 (अंतिम कड़ी )